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अपमान का जवाब सफलता से -रतन टाटा

नमस्कार दोस्तों हमारे ब्लॉग में  स्वागत है। आज हम आपके लिए एक नई स्टोरी लाये है 
अंग्रेजी में एक कहावत है -success is the best revenge मतलब सफलता सबसे अच्छा बदला है। 
आज हम टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा की जीवन के ऐसे पड़ाव की बात करने वाले है जहा उन्होंने सफलता पा कर अपने अपमान का  बदला लिया। सबसे पहले हम जान लेते है की

 रतन टाटा है कौन  

रतन टाटा का जन्म 28 दिसंबर 1932 को मुंबई में हुआ।  यह टाटा ग्रुप के फाउंडर जमशेद जी टाटा के पोते है। 1951 में उनको टाटा ग्रुप का चेयरमैन बना दिया गया उसके बाद रतन टाटा की देख रेख में ही उन्होंने अपना काम शुरू किया उसके बाद उन्होंने टाटा चाय ,टाटा स्टील ,टाटा मोटर्स को शिखर तक पहुंचाया।  भारत सरकार ने रतन टाटा को 2 बार पदमविभूषण से भी सम्मानित किया। टाटा का बिजनेस 100 देशो में फैला हुआ है और उनकी कंपनी में लगभग साढ़े छह लाख लोग काम करते है। एक बात जो रतन टाटा को सबसे अलग इसलिए बनती है की वह अपने फायदे का 66 %चैरिटी में दान कर देते है। 
बात उस समय की है 1998 में टाटा इंडिका कार मार्केट में निकली थी।  रतन टाटा का यह ड्रीम प्रोजेक्ट था परन्तु उनको इस कार का रेस्पोंस मार्केट में अच्छा नहीं मिला जिसके कारन टाटा मोटर्स घाटे में जाने लगी और उनके सांझेदार  लोगो ने उनको कंपनी को बेचने का सुझाव दिया ताकि वह इस घाटे से उभर सके उन्होंने  चाहते हुए भी अपने कंपनी के सांझेदारो की बात मान ली और फोर्ड कंपनी के पास चले गए जिसका हैडक्वाटर अमेरिका में है। 
फोर्ड कंपनी के साथ उनकी और उनके पार्टनर्स की मीटिंग करीब तीन घंटे तक चली।  फोर्ड के चेयरमैन बिलफोर्ड ने रतन टाटा के साथ अच्छा व्यहार नहीं कहा और और ताना मरते हुए कहा की जब तुमको कंपनी चलाने का पता नहीं है तो तुम इस बिजनेस में क्यों आये , हम तुम्हारी कंपनी को खरीद कर तुम पर एहसान कर रहे है।  यह बात रतन टाटा को दिल पर लग गयी और और रतन टाटा डील को छोड़ कर वह से चले गए। 
बिल फोर्ड की बातो को रतन टाटा भुला नहीं पा रहे थे वो बात उनको बार बार परेशान कर रही थी। उसके बाद रतन टाटा ने अपनी कंपनी किसी को भी नहीं बेचेंगे ये निर्णय लिया और अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट को पूरा करने और अपने अपमान का बदला लेने ले लिए उन्होंने पुरी जीजान लगा दी 
                                             मेहनत नज़र आने लगी और उनकी कंपनी को अधिक फायदा होने लगा।  और दूसरी तरफ फोर्ड कंपनी लॉस में जाने लगी और सन 2008 के अंत तक दीवालिया होने की कगार पर थी। उस समय रतन टाटा ने फोर्ड की लग्जरी कार जेकवार , लैंडरोवर को खरीदने का प्रस्ताव रखा और बदले में अच्छी कीमत देने का प्रस्ताव रखा।  फोर्ड कंपनी राजी हो गयी और फोर्ड कंपनी के मालिक बिल फोर्ड  और पार्टनर उसी तरह रतन टाटा के हेडक्वाटर आये जिस तरह रतन टाटा गए थे। इस बार भी मीटिंग लम्बी चली और बिल फोर्ड ने इस बार कहा की आप हम पर एहसान कर रहे है हमारी कंपनी खरीद कर।  आज ये लग्जरी गाड़िया टाटा कंपनी का हिस्सा है।  रतन टाटा चाहते तो उसी मीटिंग में करारा जवाब दे सकते थे, लेकिन रतन टाटा ने ऐसा नहीं किया यही एक सफल गुण है जो आदमी को और सफल बनता है और दुसरो को उनसे सिखने के लिए प्रेरित करता है। 





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