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मेहरानगढ़ - जोधपुर ( Mehraangarh Fort - Jodhpur)

 जोधपुर नगर की उतरी पहाड़ी चिड़ियाटूक  पर बना हुआ है मेहरानगढ़।  यह भी पहाड़ी  दुर्ग की श्रेणी में आता है इसे मयूरध्वज गढ़, मोरध्वज गढ़ और गढ़ चिंतामणि कहा जाता है लाल बलुआ पत्थर से निर्मित मेहरानगढ़ के महल राजपूत स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण है अपनी विशालता के कारण संभवत यह किला मेहरानगढ़ कहलाया जाता है 



मयूर आकृति का होने के कारण जोधपुर के किले को मयूरध्वज गढ़  भी कहा जाता है इसकी स्थापना मई 1459 को राव जोधा ने की थी जो मंडोर के राठौड़ शासकों का वंशज था कहा जाता है कि एक तांत्रिक अनुष्ठान के तहत इस दुर्ग की नींव में भांभी  जाति का राजिया  नामक एक व्यक्ति जीवित ही चुनावा दिया  गया था। जिस  स्थान पर राजिया  को गाढ़ा गया था उसके ऊपर कारखाना और खजाने की इमारतें बनाई गई है.

 दुर्ग के चारों ओर 20 से 150 फुट ऊंची दीवारें बनी हुई है तथा यह दीवारें 12 से 20 फुट  तक चोड़ी है इस मेहरानगढ़  के दो -उत्तरपूर्व में जयपोल तथा दक्षिण पश्चिम में शहर के अंदर से फतहपोल।  इसमें जयपोल  का निर्माण जोधपुर के राजा मानसिंह 1808 ईस्वी के आस पास करवाया था इसमें लगे लोहे के विशाल किवाड़ों  को यहां के महाराजा अभयसिंह कि सरबलन्दा  के विरुद्ध मुहिम में  ठाकुर अमरसिंह अहमदाबाद से लूट कर लाए थे 



फतेह पोल का निर्माण अजीत सिंह द्वारा जोधपुरपर  से मुग़ल खालसा समाप्त करने के उपलक्ष में करवाया गया था जोधपुर दुर्ग का एक प्रमुख प्रवेश द्वार लोहापोल  है।  लोहापोल के साथ अतुल पराक्रमी क्षत्रिय योद्धा धन्ना और भींवा  के पराक्रम और बलिदान की यशोगाथा जुड़ी हुई है जिन्होंने अपने स्वामी पाली के ठाकुर मुकुंद सिंह (महराजा अजीतसिंह के सामंत )की एक आंतरिक विग्रह में मृत्यु का प्रतिशोध लेते हुए अपने प्राणों की बाजी लगा दी थी

 इसके अन्य प्रवेश द्वारों  में ध्रुव पोल,  सूरजपोल ,इमरत  पोल तथा भैरव पोल प्रमुख और उल्लेखनीय है प्रारंभ में जोधपुर के किले का विस्तार उस स्थान तक ही था जो जोधा जी का फलसा कहलाता है बाद में परवर्ती शासकों द्वारा इसमें समय समय पर परिवर्धि होती रही विशेषकर जयपुर से डेढ़ कांगरा पोल  तक किले की प्राचीरबाद में  बनी।  

दुर्ग के भीतर महाराज सुरसिंह के बनवाए हुए मोती महल ,अजीत सिंह के बनवाए हुए फतेह महल ,अभय सिंह के बनवाए हुए फूल महल ,भगत सिंह के बनवाए हुए सिंगार महल दर्शनीय है। किले में लंबी दूरी तक मार करने वाली अनेक प्राचीन तोपे  है जिनमें किलकिला ,शंभूबाण  ,गजनीखान  जमजमा, कड़क बिजली, बगस  वाहन बिच्छू बाण , नागबली मालवा व्याधि ,मिरक चंग  बक्ष ,रहस्य कला तथा गज्जक नामक तोपे अधिक प्रसिद्ध है 



दुर्ग की प्राचीर पर ब्रिटिश काल की तोपों का संग्रह किया गया है गुब्बार तोप भी  दौलत खाने में रखी हुई है. किलकिला तो सूबेदार राजा अजीत सिंह के समय बनवाई गई थी. यह तो अजीत सिंह ने 1715 ईस्वी में विजय राज भंडारी के माध्यम से अहमदाबाद से 1400 रुपए में क्रय करवाई थी। शंभू बाण तोप राजा अभय सिंह ने अहमदाबाद के सूबेदार सर बुलंद खान को 1730 ईस्वी में परास्त कर प्राप्त की थी।  यह भी कहा जाता है कि यह तो अभय सिंह ने सूरत से खरीदकर जोधपुर मंगवाई थी। कड़क बिजली नामक तोप राजा  अजीत सिंह के समय घाणेराव  से मंगवाई गई थी। नुसरत तोप राजा अभय सिंह ने  1730 में  अहमदाबाद के गवर्नर बुलंदखा ,सरकार खा  तथा गजनी  खा  को परास्त कर छीनी थी। 

1607 ईस्वी में राजा गज सिंह ने जालौर पर चढ़ाई कर गजनी खान नामक तोप  प्राप्त की थी जिसमें किलकिला शंभूबाण  गजनी खान  आदि प्रसिद्ध  है। दुर्ग  परिसर में स्थित मंदिरों में चामुंडा माता ,मुरली मनोहर तथा आनंदघन के प्राचीन मंदिर है  राजा मानसिंह के ही समय वीर कीरत सिंह सोढा जोधपुर के किले पर शत्रुओं से संघर्ष करते हुए काम आया जिसकी छतरी जयपुर के निकट बाई  और विद्यमान हैं। 

किले के अन्य भवनों में ख्वाबगाह का महल तख्त विलास ,दौलतखाना  ,चोखे लाल महल, बिचला महल, रनिवास सिलेहखाना , तोपखाना उल्लेखनीय है।  दौलत खाने के आंगन में महाराजा तख्त सिंह द्वारा विनिर्मित श्रृंगार चौकी है तथा जहां  जोधपुर के राजाओं का राज तिलक होता था दुर्ग के भीतर राठौड़ों की कुलदेवी नागणेची  जी का मंदिर भी विद्यमान है। 



जोधपुर दुर्ग में जल आपूर्ति के प्रमुख स्रोतों के रूप में रानी सर और पदम सर तालाब विशेष उल्लेखनीय है। इसमें रानी सर जलाशय का निर्माण राव जोधा की रानी जसमा हाड़ी  द्वारा किले की स्थापना के साथ ही करवाया गया था. पदमसर  राव गंगा की रानी पद्मावती द्वारा बनवाया गया।  किले की तलहटी में बसे जोधपुर नगर के चारों ओर एक सुदृढ़ प्राचीर बनी है इसमें 101  विशाल बुर्ज और 6 दरवाजे है।  यह दरवाजे नागोरी दरवाजा, मेड़तिया दरवाजा , जालोरी दरवाजा तथा चांदपोल कहलाते हैं। इनके पश्चिमी दरवाजे चांदपोल को छोड़कर अन्य पांच दरवाजो  के नाम मारवाड़ के प्रमुख नगरों के नाम पर है जिसके मार्ग उधर  होकर जाते हैं। इस दुर्ग को  जोधा के बड़े पुत्र राव बीका  ने जीतकर अपने अधिकार में कर लिया था। किंतु राजमाता के कहने पर  बीका ने जोधपुर नरेश के समस्त राजकीय चिन्ह एवं कुल देवी की मूर्ति लेकर जोधपुर पर से अपना दावा छोड़ दिया और बीकानेर में जाकर राज्य करने लगे। महाराजा मानसिंह के किले की चाबियां अंग्रेजी कप्तान को सौंपकर दुर्ग में रक्तपात होने से बचाया।  यह दुर्ग  वीर दुर्गादास की स्वामी भक्ति का साक्षी है। 

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